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Sat. May 18th, 2024

देहरादून। सूचना एवं लोक संपर्क विभाग द्वारा समाचार पत्र पत्रिकाओं का पक्ष सुने बिना राज्य के कई समाचार पत्र पत्रिकाओं को विज्ञापन सूचिबद्धता व नवीनीकरण सूची से बाहर करने पर राज्यभर में आरंभ हुये विरोध को देखते हुए सूचना एवं लोक संपर्क विभाग ने निरस्त किये गये आवेदनों की आपत्तियों के कारण कार्यवृत्त में इंगित कर संबंधित समाचार पत्रों को अवगत कराने के निर्देश इस आशय से समस्त जिला सूचना अधिकारियों को दिये हैं जिससे आगामी बैठक में इंगित कमियों को दूर करते हुए विचार के लिए पुनः समिति के समक्ष रखा जा सके।

नेशनलिस्ट यूनियन आफ जर्नलिस्ट्स ने कहा है कि इस आदेश में स्पष्टता और समयबद्धता का उल्लेख न होने से यह विशेष हितकारी प्रतीत नहीं होता। यूनियन ने आशंका व्यक्त की है कि निकट भविष्य में समति के बैठक कब होगी कोई निश्चित नहीं है और समिति में कार्यकाल भी समाप्ति की ओर है। यूनियन का कहना है कि विगत समिति के कार्यकाल में भी कई समाचार पत्रों को इसी धोखे में एक-एक साल से भी अधिक समय तक लटकाये रखा गया। गत दिवस महानिदेशक सूचना से मिले नेशनलिस्ट यूनियन आफ जर्नलिस्ट्स के संरक्षक त्रिलोक चन्द्र भट्ट ने इस आदेश को आधा अधूरा अस्पष्ट आदेश बताया है। उनका कहना है कि सोमवार को महानिदेशक के स्तर से यह आश्वासन दिया गया था कि पंद्रह दिन के भीतर आपत्तियों के निस्तारण का समय दिया जायेगा ,उनके द्वारा संबंधित मामले में पत्र तो जारी किया किन्तु आश्वासन के अनुसार अपनी वचनबद्धता नहीं निभायी।

ज्ञातव्य है कि राज्य के लघु, मध्यम और मझोले समाचार पत्रों का पक्ष सुने और जाने बिना ही प्रिंट मीडिया विज्ञापन मान्यता समिति द्वारा सूची को अंतिम रूप से निस्तारित कर पूर्व से सूचीबद्ध समाचार पत्र पत्रिकाओं की विज्ञापन सूचीबद्धताओं को निरस्त कर दिया गया था। जबकि भारत सरकार के विज्ञापन एवं दृश्य प्रचार निदेशालय तक में ऐसा नहीं होता। कल नेशनलिस्ट यूनियन आफ जर्नलिस्ट्स के संरक्षक त्रिलोक चन्द्र भट्ट ने इसका विरोध करते हुए महानिदेशक सूचना को ज्ञापन देकर इसे मनमाना निर्णय और नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत में विरूद्ध बताया था। यूनियन ने एक ही दिन में विज्ञापन जारी कर कुछ समाचार पत्रों को लाभ पहुंचाने और कुछ को विज्ञापन प्रदान न करने के साथ साथ उन्हें सूचीबद्धता से भी बाहर करने के निर्णय को पत्रकारों के मुंह से निवाला छीनने वाला तुगलकी फरमान बताया था।

पिछले डेढ़ वर्ष से कोरोनाकला में जब पूरे देश में एक दूसरे की मदद की जा रही है। कई तरह की कर्ज माफी कर राहत दी जा रही है, लोगो का आर्थिक मदद दी जा रही है, ऐसे में छोटे समाचार पत्रों की मदद करने के बजाय उत्तराखण्ड के पत्र लघु, मध्यम और मझोले समाचार पत्रों पर कोरोनाकाल व आगामी चुनावी वर्ष से पूर्व चलाये गये चाबुक से सत्ताधारी नेताओं के माथे पर चिंता की लकीरे पैदा होने लगी हैं।

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